गुरुवार, 9 अगस्त 2012

आकर्षण के लिए त्राटक साधना

आँखे ही किसी मनुष्य के विचार , सोंच ,एवं भावनाओं की माध्यम होती हैं ,कई बार हम खुद भी महसूस करतें हैं की अमुक व्यक्ति से मिलने पर एक अजीब तरह का आकर्षण अनुभव हुआ या किसी व्यक्ति से मिलने पर मन में अजीब सी तरंग जाग्रत हो उठी .इस सबमें व्यक्ति के  व्यक्तित्व का कोई योगदान नहीं होता ,ये सब उसकी आँखों से निकली हुई तरंगे होती हैं जिन्हें हम आकर्षण या सम्मोहन की संज्ञा देतें हैं .ये आकर्षण सभी प्राप्त कर सकते हैं जिसे साधना की भाषा में त्राटक क्रिया कहा जाता है , इस क्रिया   के द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण, दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, सम्मोहन, आकर्षण, अदृश्य वस्तु को देखना, दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है. प्रबल इच्छाशक्ति से साधना करने पर सिद्धियाँ स्वयमेव आ जाती हैं। तप में मन की एकाग्रता को प्राप्त करने की अनेकानेक पद्धतियाँ योग शास्त्र में निहित हैं, इनमें 'त्राटक' उपासना सर्वोपरि है. हठयोग में इसको दिव्य साधना से संबोधित करते हैं,त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है.

शनिवार, 4 अगस्त 2012

ह्रदय रेखा


  

ह्रदय रेखा हाँथ में उपस्थित सबसे पहली रेखा है जो उंगलियों को (बुध से ले कर गुरु पर्वत ) घेरे रहती है .हस्त रेखा में इस रेखा का महत्वपूर्ण स्थान होता है ,इस रेखा के द्वारा हम व्यक्ति के प्रेम की भावनाओं एवं उसकी उदारता का पता लगातें है,ये रेखा हमें ये बताती है की व्यक्ति के ह्रदय की प्रकृति कैसी है .व्यक्ति कठोर ह्रदय का है अथवा सरल ,व्यक्ति में महत्वाकांक्षा है कि नहीं आदि बातों को हम ह्रदय रेखा के माध्यम से पता लगातें हैं .इस रेखा का आरम्भ स्थान विभिन्न उँगलियों के नीचे से हो सकता है .मैं यहाँ पर आपको ह्रदय रेखा के कुछ तथ्यों कि जानकारी देता हूँ

बुधवार, 25 जुलाई 2012

चन्द्र पर्वत


चंद्र पर्वत शुक्र पर्वत के नीचे स्थित होता है, सौन्दर्यप्रियता, आदर्शवादी, साहित्य, काव्य, और मानसिक तनाव का कारक ग्रह है, या हम ये भी कह सकते हैं कि यह पर्वत मन का कारक है कल्पना इसकी प्रिय साथी है, कोमलता, भावुकता, प्रकृति के प्रति लगाव आदि स्वाभाविक गुण होते है, यह अपनी ही दुनिया में मस्त रहतें हैं , यदि चंद्र पर्वत हाँथ में अच्छा उभार लिए है और अपने स्थान पर है तो ऐसा व्यक्ति प्रकृति- प्रेमी होगा, ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी किसी को धोखा नहीं दे सकता, संसार के छल- धोखेबाजी, जलन, नफरत , आदि से कोसों दूर रहता है, ऐसे व्यक्ति प्रसिद्ध साहित्यकार, कलाकार, संगीत के जानकार होते है, ऐसा व्यक्ति मिलनसार और स्वतंत्र रूप से विचार करने में समर्थ होता  है, एवं धार्मिक प्रवत्ति का होता  है .

शुक्र पर्वत





अंगूठे के दूसरे पर्व के नीचे तथा जीवन रेखा से घिरा हुआ स्थान शुक्र पर्वत का स्थान कहलाता है, शुक्र में स्वास्थ्य, सौन्दर्यप्रियता, विलासिता, कामवासना, संतान उत्पादन शक्ति, आदि गुण होते है, जिनके हाथ में शुक्र पर्वत उभार लिए हुए होता है वह व्यक्ति निश्चय ही दिखने में आकर्षक व्यक्तित्व का होगा , धैर्य और साहस प्रबल रूप से होता है, यदि किसी हाथ में शुक्र पर्वत बिल्कुल हीन अवस्था में हो तो वह व्यक्ति संसार या समाज से कोई मतलब ना रखने वाला ,दया आदि की भावना से हीन होता है और घर- बार छोड़कर सन्यास ले लेता है, किन्तु यह पर्वत कम विकसित होता है अर्थात सामान्य से कम की अवस्था में  तो उस व्यक्ति में साहस और उत्साह की कमी  होगी, गृहस्थ जीवन में उसकी रूचि नहीं रहती है और लापरवाही का जीवन ही जीता है उसे घर या समाज की भी कोई विशेष चिंता या फ़िक्र नहीं होती  है .

सोमवार, 23 जुलाई 2012

सम्पन्नता दायक गोरख साबर मन्त्र


गोरख शाबर  - गोरख जी का ये साबर मंत्र समस्त प्रकार की सुख सम्पन्नता एवं आत्मिक शांति को प्रदान करने वाला है ,इस मंत्र का नियमित जप करने से जप कर्ता को एक विशेष प्रकार की शांति का अनुभव तो होता ही है साथ ही साथ आर्थिक, पारिवारिक आदि बाधाएं भी कुछ दिनों में स्वतः ही समाप्त हो जाती है ,अत्यंत अनुभूत एवं लाभदायक मंत्र है ,नीचे लिखे मंत्र का रोजाना २१,२७,५१,अथवा सामर्थ्य अनुसार विषम संख्या में जप करने से उपरोक्त लाभ कुछ दिन में ही मिलने शुरू हो जाते हैं 

हनुमान जी का सर्व भय हरण साबर मंत्र




आज प्रत्येक मनुष्य चाहे वो अमीर हो या गरीब ,किसी न किसी समस्या व् परेशानी से जरूर ग्रसित है .प्राचीन काल से ही दैनिक व आर्थिक जीवन की परेशानियो के लिए ईश्वर की आराधना व विभिन्न प्रकार की क्रिया व
कर्मकांड किये जाते रहे हैं ,जिनमें शाबर मंत्रो का विशेष प्रभाव रहा है मैंने खुद भी अपने जीवन काल में कई व्यक्तियों को इन शाबर मंत्रो से कई तरह की परेशानियों से छुटकारा दिलवाया है ,इन मंत्रो के जाप में कोई विशेष अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि ये मंत्र अपने आप में ही स्वयं सिद्ध होतें हैं.
यदि रोजाना कुछ समय के लिए एक निश्चित संख्या में इन मन्त्रों का जप किया जाये तो इसके परिणाम खुद ही सामने आने लगते हैं .जनकल्याणार्थ हेतु कुछ शाबर मन्त्र लिख रहा हूँ जिनका लाभ आप भी उठायें एवं दूसरों को भी इन मंत्रो से लाभान्वित करें

मंगल पर्वत




मंगल के दो क्षेत्र होते है, उनको उच्च मंगल तथा निम्न मंगल कहा जाता है, उच्च मंगल चंद्र और बुध पर्वत के मध्य में होता है, दूसरा स्थान जीवन रेखा के प्रारंभिक स्थान और शुक्र पर्वत के मध्य तक होता है .
मंगल के  मुख्य  गुण साहस,बल,युद्ध व निडरता आदि है, मंगल प्रधान व्यक्ति साहसी, निडर व हष्ट -पुष्ट शरीर के मालिक होतें हैं , ये किसी से दबकर या डरकर रह ही नहीं सकते ,जिनका मंगल हथेली में प्रधान हो तो ऐसे व्यक्तिओं को प्रेम से ही वश में किया जा सकता है जोर व जबर्दस्ती से नहीं, ऐसे व्यक्ति शारीरिक रूप से हृष्ट- पुष्ट व लंबे-चौड़े होते है स्वभाव में शासन करने की प्रवृति के कारण तानाशाह तक बन जाते है, यह व्यक्ति  अन्याय होते सहन नहीं कर सकते, प्रायः ऐसे व्यक्ति सेना व पुलिस विभाग के उच्च पदों पर होते है इनमे आत्मविश्वास, दृढ़ता  जैसे गुण विद्दमान रहते है, 

रविवार, 22 जुलाई 2012

बुध पर्वत




यह पर्वत कनिष्ठिका अंगुली के नीचे होता है, इसका  हस्त रेखा विज्ञान में इसलिए महत्व है क्योकि यह भौतिक समृद्धि एवं सम्पन्नता से आंका जाता है, बुध प्रधान व्यक्ति का कद लम्बाई में अन्य की अपेक्षा कम होता है, किन्तु ये जिस कार्य को प्रारम्भ करते है, उसे पूर्ण करके मानते है ऐसे व्यक्ति बहुत से तरीकों से पैसा कमाना जानते है, मानसिक श्रम , जासूस , श्रेष्ठ वक्ता, परिस्थितियो से समझौता करने वाले, योजनाबद्ध जीवन-यापन करने वाले तथा विनोदी स्वभाव के होते है, व्यापारिक क्षेत्र में ये विशेष सफलता प्राप्त करते है.
जिन हथेलियो में बुध पर्वत सही रूप से विकसित होता है, वे व्यक्ति श्रेष्ठ मनोवैज्ञानिक और व्यवहार कुशल होते है सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित करके अपना काम करवाने की इनमें क्षमता होती है, ये सदैव अवसर की खोज में रहते है और समय पर अपना कार्य पूर्ण करने में नहीं चूकते है, ऐसा व्यक्ति चालक एवं चतुर होता है, व्यापारिक कार्यों में श्रेष्ठ व्यापारी, वकील, चिकित्सक,पत्रकार तथा नेता होते है, जिन हथेलियो में बुध पर्वत अत्यंत उभरा हुआ हो, वह धन-संचय करने में लगे रहते है, धन के पीछे पागल रहते है, भले ही उसके लिए उन्हें जघन्य अपराध करने पड़े, जिन हथेलियो में बुध पर्वत सामान्य उठा हुआ होता है, वे पूर्ण भौतिकवादी होते है, ये लोग भी उचित- अनुचित साधनों से धन- संग्रह करते है, ऐसे व्यक्ति समाज में अपना विद्वतापूर्ण एवं धार्मिक रूप दर्शाते है, गणित, विज्ञान,दर्शन,वकालत आदि इनके प्रिय विषय होते है, ये जीवन में श्रेष्ठ वकील, डाक्टर, अभिनेता, व्यापारी और लेखक होते है, लेखन के क्षेत्र में अच्छी सफलता प्राप्त करते है, प्रेम के क्षेत्र में भी ये लोग व्यावहारिक सम्बन्ध ही रखते है, इनके प्रेम में गांभीर्य नहीं होता है, स्वार्थ और धूर्तता अधिक होती है, इनके सम्बन्ध वासनात्मक ही होते है, मानसिक और भावनात्मक नहीं होते हैं.

सूर्य पर्वत





यह अनामिका अंगुली के बीच में होता है, यह शनि पर्वत और बुध पर्वत के मध्य होता है, इस पर्वत के उभार लिए होने से मनुष्य में उत्साह एवं सौन्दर्यप्रियता होती है, भले ही वह व्यक्ति कलाकार या संगीत-प्रेमी न हो, फिर भी उसकी रूचि संगीत और कला में होती है, यह पर्वत मनुष्य की सफलता का सूचक है, यदि यह पर्वत अनुपस्थित है तो वह व्यक्ति साधारण जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य होता है, पर्वत का विकास मनुष्य को निश्चय ही उच्च पदों पर ले जाता है, इस पर्वत का होना नितांत आवश्यक है क्योकि यश, मान, प्रतिष्ठा, सफलता, प्रेम इसी पर निर्भर करता है.



सोमवार, 16 जुलाई 2012

पंचमुखी हनुमानजी


शास्त्रो विधान से हनुमानजी का पूजन और साधना विभिन्न रुप से किये जा सकते हैं।
हनुमानजी का एकमुखी,पंचमुखीऔर एकादश मुखीस्वरूप के साथ हनुमानजी का बाल हनुमान, भक्त हनुमान, वीर हनुमान, दास हनुमान, योगी हनुमान आदि प्रसिद्ध है। किंतु शास्त्रों में श्री हनुमान के ऐसे चमत्कारिक स्वरूप और चरित्र की भक्ति का महत्व बताया गया है, जिससे भक्त को बेजोड़ शक्तियां प्राप्त होती है। श्री हनुमान का यह रूप है – पंचमुखी हनुमान
मान्यता के अनुशार पंचमुखीहनुमान का अवतार भक्तों का कल्याण करने के लिए हुआ हैं, हनुमान के पांच मुख क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊ‌र्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित हैं.
पंचमुखीहनुमानजी का अवतार मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को माना जाता हैं. रुद्र के अवतार हनुमान ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं इसकी आराधना से बल, कीर्ति, आरोग्य और निर्भीकता बढती है.
रामायण के अनुसार श्री हनुमान का विराट स्वरूप पांच मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है। हनुमान के पांच मुख क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊ‌र्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित माने गएं हैं.
पंचमुख हनुमान के पूर्व की ओर का मुख वानर का हैं। जिसकी प्रभा करोडों सूर्यो के तेज समान हैं। पूर्व मुख वाले हनुमान का पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है.
पश्चिम दिशा वाला मुख गरुड का हैं। जो भक्तिप्रद, संकट, विघ्न-बाधा निवारक माने जाते हैं। गरुड की तरह हनुमानजी भी अजर-अमर माने जाते हैं.

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

शनि पर्वत

               
शनि  पर्वत का मूल स्थान मध्यमा अंगुली के मूल में स्थित होता है, हथेली में इसका उभरापन असाधारण प्रवृतियों का सूचक है, इसके स्वाभाविक गुण एकांतप्रियता, तांत्रिक या गुप्त विद्याओ में रूचि, गंभीर, संगीतप्रिय, दुखांत साहित्य, दुखांत संगीत, जासूसी साहित्य पढ़ना आदि है,
     हथेली में इस पर्वत का न होना असफलता का सूचक है,क्योकि मध्यमा अंगुली भाग्य की सूचक है भाग्य रेखा इस पर्वत पर आकर समाप्त होती है इस कारण से शनि पर्वत का विशेष महत्व है, यदि शनि पर्वत पूरी हथेली में सबसे अधिक उभार लिए है तो वह व्यक्ति प्रबल भाग्यवादी होगा .
   यदि शनि पर्वत उभार लिए हुये है और किसी भी पर्वत की ओर झुका हुआ नहीं है तो ऐसा व्यक्ति एकांतप्रिय होता है, वह व्यक्ति लक्ष्य-प्राप्ति में लीन रहता है उसे समाज व घर की चिंता नहीं रहती , यहाँ तक कि वह घर में स्त्री व बच्चो तक कि चिंता नहीं करता.
 

बुधवार, 11 जुलाई 2012

मस्तिष्क रेखा


यदि किसी जातक के बायें हाथ में   मस्तिष्क रेखा बिल्कुल हल्की या क्षीण हो और दाहिने हाथ में बलवान और स्पष्ट हो तो यह समझना चाहिए कि जातक की  मानसिक प्रवृतियों के विकास में उसके माता-पिता किसी का भी प्रभाव नहीं पड़ रहा है, और स्वंय  ही उसने उनको विकसित किया है, ऐसा योग उन लोगो के हाथो में पाया जाता है जो स्वयं अपने परिश्रम से अपनी उन्नति करते है
  यदि दाहिने हाथ में मस्तिष्क रेखा बायें हाथ के मुकाबले क्षीण या निर्बल हो, तो यह समझना चाहिए कि जातक ने अपने मानसिक विकास के अवसरों से लाभ नहीं उठाया और वह अपने माता-पिता कि मानसिक क्षमता की बराबरी न तो करता है, न कभी कर सकता है, ऐसा व्यक्ति चाहे स्वभाव से हठी क्यों न हो, किन्तु उसमे इच्छा- शक्ति की कमी होती है, वह हठी होगा या नहीं,यह अगूठे के प्रथम पर्व(जिस पर नाखून स्थित होता है ) की बनावट से जाना जा सकता है .अगर नाखून का प्रथम पर्व अपने सामान्य की अपेक्षा बड़े आकार में होगा तो हठ एवं जिद्दीपन की प्रवत्ति जातक में विशेष रूप से पायी जाती है

बृहस्पति पर्वत का महत्व







यह पर्वत तर्जनी उंगली के नीचे स्थित होता है ,ब्रहस्पति पर्वत के अत्यधिक विकसित होने पर जातक महत्वाकांक्षी और नेतृत्व गुणों से युक्त होता है , वह दूसरों को  प्रभावित करने में अत्यधिक उत्सुक होता है जिसके कारण वह राजनीति क्षेत्र में आगे होता है , इस तरह के जातको का स्वभाव आदेशात्मक एवं धार्मिक  होता है ,ये प्रायः राजनीति के अलावा सेना, उच्च प्रबंधन, अथवा किसी संगठन में उच्च पद पर आसीन होते है
  इस पर्वत पर सितारा,त्रिकोण एवं त्रिशूल आदि के चिन्ह ब्रहस्पति पर्वत के लिए शुभ व लाभदायक माने जाते है किन्तु यदि इस पर्वत पर रेखाओं का जाल ,गुणक चिन्ह ,धब्बा ,द्वीप आदि के चिन्ह इस पर्वत के लिए अशुभ माने जाते है , अगर  दायें हाथ में ये पर्वत अन्य पर्वतों से अधिक उभार लिए हो तो जातक पर इस पर्वत का अत्यधिक प्रभाव होता है ,और वह बृहस्पति  प्रधान  जातक माना जायेगा. बृहस्पति प्रधान जातक प्रायः मध्यम कद अथवा ऊँचाई का होगा, बृहस्पति प्रधान जातक में महत्वाकांक्षा की भावनाएं प्रबल होती है, यहाँ

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

वास्तु के कुछ खास टिप्स


वास्तु दोष को दूर करने के लिए किसी विशेष उपाय की आवश्यकता नहीं है यदि हम अगर अपनी दैनिक दिनचर्या में इन उपायों को शामिल कर लें तो बहुत सी समस्यायों को इन छोटी-छोटी मगर अत्यधिक प्रभावशाली उपायों से दूर कर सकतें हैं .

सूर्यास्त व सूर्योदय होने से पहले मुख्य प्रवेश द्वार की साफ-सफाई हो जानी चाहिए। सायंकाल होते ही यहां पर उचित रोशनी का प्रबंध होना भी जरूरी हैं
  1. दरवाजा खोलते व बंद करते समय किसी प्रकार की आवाज नहीं आना चाहिए, बरामदे और बालकनी के ठीक सामने भी प्रवेश द्वार का होना अशुभ होता हैं.
  2. प्रवेश द्वार पर गणेश व गज लक्ष्मी के चित्र लगाने से सौभाग्य व सुख में निरंतर वृद्धि होती है,
  3. पूरब व उत्तर दिशा में अधिक स्थान छोड़ना चाहिए
  4. मांगलिक कार्यो व शुभ अवसरों पर प्रवेश द्वार को आम के पत्ते व हल्दी तथा चंदन जैसे शुभ व कल्याणकारी वनस्पतियों से सजाना शुभ होता है.
  5. प्रवेश द्वार को सदैव स्वच्छ रखना चाहिए, किसी प्रकार का कूड़ा या बेकार सामान प्रवेश द्वार के सामने कभी न रखे, प्रातः व सायंकाल कुछ समय के लिए दरवाजा खुला रखना चाहिए.
  6. सांय काल घर की दहलीज़ पर दीपक अवश्य जलाएं इससे घर का पित्र दोष भी समाप्त होता है एवं नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश नहीं हो पाता .
  7. बैठक के कमरे में द्वार के सामने की दीवार पर दो सूरजमुखी के या ट्यूलिप के फूलों का चित्र लगाएं.
  8. घर के बाहर के बगीचे में दक्षिण-पश्चिम के कोने को सदैव रोशन रखें.
  9. घर के अंदर दरवाजे के सामने कचरे का ‍डिब्बा न रखें.
  10. घर के किसी भी कोने में अथवा मध्य में जूते-चप्पल (मृत चर्म) न रखेंजूतों के रखने का स्थान घर के प्रमुख व्यक्ति के कद का एक चौथाई हो, उदाहरण के तौर पर 6 फुट के व्यक्ति (घर का प्रमुख) के घर में जूते-चप्पल रखने का स्थल डेढ़ फुट से ऊंचा न हो 

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

नए घर में पहली बार

आज के ज़माने में समाचार पत्रों एवं बुद्धू बक्सों से अवतरित गुरुओं ने वास्तु को इतना भ्रामक बना दिया है कि  किसकी माने और किसकी नहीं वाली स्थिति पैदा हो जाती है .हमारे इन गुरुओं को पता होना चाहिए कि वास्तु शास्त्र की देन हमारे प्राचीन भारत की है न कि चीन एवं इजिप्ट की. ये हमारी  विडम्बना   है  कि हम अपने देश के विद्वानों  के रचित शास्त्र नहीं वरन  कीरो , नास्त्रेदमस आदि के लिखे  हुए भ्रामक एवं उलझाऊ शास्त्रों के दीवाने रहते हैं. और शायद इसी विचार धारा ने हमसे हमारे शास्त्रों को दूर कर दिया है, जिसका फायदा आज कल के स्वंअवतरित गुरुजनों ने बखूबी उठाया है जो भारतीय  वास्तु में चीनी वस्तुओं के उपयोग से वास्तु दोष को दूर करने का बखान करते हैं .क्या ये बता सकते है कि जो दोष एक तुलसी का पौधा दूर कर सकता है वो चाइनीज़ बांस कैसे दूर करेगा,सनातन काल से हमारे यहाँ तुलसी,पीपल ,बरगद आदि को पूज्यनीय समझा जाता रहा है मगर धन्य हो ज्ञान दाताओं  का जिनकी बदौलत चाइनीज़ बांस ,कछुए ,और भी न जाने क्या -क्या, वास्तु दोष को दूर करने के नाम पर हमारे घरों में पहुंचा चुके है .
मुझे लगता है इन गुरुओं को इनके हाल में छोडना ही उचित रहेगा.चलिए अब बात करते है  कि नए घर में प्रवेश करने से पहले हमें किन - किन तिथियों एवं महीनों   पर ध्यान देना चाहिए एवं ये हम पर किस तरह का प्रभाव डालते हैं .


बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

वास्तु में दिशाओं का महत्व

गृह निर्माण के समय  दिशाओं का अपना एक विशेष  महत्व है , दिशाओं को 4 भागों में बांटा गया है ,दिशाओं के साथ - साथ 4 कोण भी मने गए है इन सबका असर  भवन एवं भवन में निवास करने वाले सभी सदस्यों पर समान रूप से पड़ता है .यहाँ हम सबसे पहले बात करेंगे दिशाओं और उनके महत्व की .
हिंदू धर्म के अनुसार दिशाओं को हम 4 भागों में विभाजित करते है
पूरब दिशा 
पश्चिम दिशा 
उत्तर दिशा 
दक्षिण दिशा 
दिशाओं को हम 4 कोण में विभाजित करते है
ईशान कोण ( पूर्व एवं  उत्तर की  दिशा का कोना )
वायव्य कोण (उत्तर एवं  पश्चिम की  दिशा का कोना )
नैरत्य कोण (पश्चिम एवं   दक्षिण की  दिशा का कोना )
आग्नेय कोण (दक्षिण एवं पूर्व की दिशा का कोना )


अब आइये जानते है की इन दिशाओं से हमारे जीवन पर क्या - क्या प्रभाव हो सकते हैं

पूरब दिशा - वास्तु शास्त्र में इस दिशा को बहुत ही महत्व पूर्ण माना गया है ,यह सूर्य के उदय होने की दिशा है एवं इस दिशा के स्वामी देवों के राजा इन्द्र हैं .भवन बनाते समय जहाँ तक हो सके इस दिशा को अधिक खुला रखना चाहिए ,यह सुख एवं समृद्धि का घोतक है .
पश्चिम दिशा -  पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण देव हैं , भवन निर्माण के समय इस दिशा को खाली नहीं छोड़ना चाहिए ,भारी निर्माण इस दिशा में बेहद शुभ माना जाता है इस दिशा में दोष होने पर गृहस्थ जीवन में सुख की कमी,कारोबार में साझेदारों से अनबन ,एवं गृह स्वामी के मान सम्मान में कमी आदि दोष होते हैं.

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

प्लाट खरीदने से पहले








प्लाट खरीदने से पहले प्लाट की वास्तुस्थिति जरूर देख लेनी चाहिए,जैसे की जहाँ आप प्लाट खरीद रहे है वहाँ पेड़ पौधों की संख्या कितनी है , प्लाट में या आस - पास कुवां या नलकूप किस दिशा एवं किस स्थिति में है एवं  प्लाट की लम्बाई चौड़ाई व आकार कितनी है .
उपरोक्त बातों को अच्छी तरह से देख लेने के बाद ही प्लाट का चयन करें .वैसे अच्छा प्लाट वही माना  गया है जिसकी चारों भुजाएं बराबर ९० डिग्री कोण में हों .
जहाँ तक संभव हो उत्तरमुखी या पूर्वमुखी प्लाट का चयन ही करना चाहिए, ये प्लाट अति उत्तम माने जाते हैं,क्योंकि भवन के लिए इन दोनों दिशाओं को बहुत ही अच्छा माना  जाता है .अगर किसी प्लाट में उत्तर और पूर्व की दिशा खुली हुई हो तो वो प्लाट दिशा के हिसाब से बहुत ही शुभ माना जाता है. 
प्लाट को पूरब एवं उत्तर की ओर नीचा , एवं पश्चिम व दक्षिण की तरफ ऊंचा होना चाहिए .
उस प्लाट व घर का चयन कदापि न करें जिससे सटकर मंदिर, मस्जिद ,चौराहा , पीपल,वटवृक्ष आदि हों.क्योंकि इन स्थितियों  में उस घर में रहने वाले हर एक  सदस्य की मानसिक आर्थिक एवं शारीरिक उन्नति में बाधाएं आने लगती हैं.
प्लाट या भवन के दक्षिण दिशा की और जल स्रोत को वास्तु शास्त्र के अनुसार बहुत ही अशुभ माना गया है.घर की नाली का निकास इस दिशा में कदापि नहीं होना चाहिए इसी के ठीक विपरीत अगर घर की नाली का निकास अथवा कुवां उत्तर दिशा में है तो ये बेहद शुभ फल देने ,वाला माना गया है.
पूरब से पच्छिम की ओर लंबा प्लाट सूर्य वेधी मन जाता है जिसे वास्तु के हिसाब से बहुत ही शुभ  माना जाता है, एवं उत्तर से दक्षिण की ओर का लंबा प्लाट धन प्रदायक माना जाता है.
प्लाट लेते समय अथवा भवन निर्माण करते समय ये ध्यान रखना चाहिए की भवन का निर्माण उस प्लाट पर कभी न करें जिसकी त्रिकोण आकृति हो, ये सबसे खतरनाक प्लाट घर के सदस्यों के लिए साबित हो सकता है .
मेरे एक मित्र जो लखनऊ नगर निगम में उच्च पद पर आसीन थे ,इसी तरह के सस्ते प्लाट के चक्कर में पड़कर अपना सब कुछ गँवा बैठे थे, अगर मै उनकी सारी बातों को यहाँ बताने लगूंगा तो शायद समय ही कम पड़ जायेगा .कहने का तात्पर्य ये है की त्रिकोण प्लाट अगर कोई फ्री में भी दे तो भी  नहीं लेना चाहिए .

शनिवार, 28 जनवरी 2012

बुधवार, 18 जनवरी 2012

बाधा एवं निवारण



प्रायः सभी धर्मग्रंथों में ऊपरी हवाओं, नजर दोषों आदि का उल्लेख है। कुछ ग्रंथों में इन्हें बुरी आत्मा कहा गया है तो कुछ अन्य में भूत-प्रेत और जिन्न।
यहां ज्योतिष के आधार पर नजर दोष का विश्लेषण प्रस्तुत है।
ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार गुरु पितृदोष, शनि यमदोष, चंद्र व शुक्र जल देवी दोष, राहु सर्प व प्रेत दोष, मंगल शाकिनी दोष, सूर्य देव दोष एवं बुध कुल देवता दोष का कारक होता है। राहु, शनि व केतु ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह हैं। जब किसी व्यक्ति के लग्न (शरीर), गुरु (ज्ञान), त्रिकोण (धर्म भाव) तथा द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, तो उस पर ऊपरी हवा की संभावना होती है।
लक्षण
नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति का शरीर कंपकंपाता रहता है। वह अक्सर ज्वर, मिरगी आदि से ग्रस्त रहता है।
कब और किन स्थितियों में डालती हैं ऊपरी हवाएं किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव?
जब कोई व्यक्ति दूध पीकर या कोई सफेद मिठाई खाकर किसी चौराहे पर जाता है, तब ऊपरी हवाएं उस पर अपना प्रभाव डालती हैं। गंदी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है, इसीलिए ऐसी जगहों पर जाने वाले लोगों को ये हवाएं अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन हवाओं का प्रभाव रजस्वला स्त्रियों पर भी पड़ता है। कुएं, बावड़ी आदि पर भी इनका वास होता है। विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर ये हवाएं सक्रिय होती हैं। इसके अतिरिक्त रात और दिन के १२ बजे दरवाजे की चौखट पर इनका प्रभाव होता है।
दूध व सफेद मिठाई चंद्र के द्योतक हैं। चौराहा राहु का द्योतक है। चंद्र राहु का शत्रु है। अतः जब कोई व्यक्ति उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है, तो उस पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव की संभावना रहती है।
कोई स्त्री जब रजस्वला होती है, तब उसका चंद्र व मंगल दोनों दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनों राहु व शनि के शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु की द्योतक है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं के प्रकोप की संभावना रहती है।
कुएं एवं बावड़ी का अर्थ होता है जल स्थान और चंद्र जल स्थान का कारक है। चंद्र राहु का शत्रु है, इसीलिए ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है।
जब किसी व्यक्ति की कुंडली के किसी भाव विशेष पर सूर्य, गुरु, चंद्र व मंगल का प्रभाव होता है, तब उसके घर विवाह व मांगलिक कार्य के अवसर आते हैं। ये सभी ग्रह शनि व राहु के शत्रु हैं, अतः मांगलिक अवसरों पर ऊपरी हवाएं व्यक्ति को परेशान कर सकती हैं।
दिन व रात के १२ बजे सूर्य व चंद्र अपने पूर्ण बल की अवस्था में होते हैं। शनि व राहु इनके शत्रु हैं, अतः इन्हें प्रभावित करते हैं। दरवाजे की चौखट राहु की द्योतक है। अतः जब राहु क्षेत्र में चंद्र या सूर्य को बल मिलता है, तो ऊपरी हवा सक्रिय होने की संभावना प्रबल होती है।
मनुष्य की दायीं आंख पर सूर्य का और बायीं पर चंद्र का नियंत्रण होता है। इसलिए ऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले आंखों पर ही पड़ता है।
यहां ऊपरी हवाओं से संबद्ध ग्रहों, भावों आदि का विश्लेषण प्रस्तुत है।

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

परेशानियों को दूर भगाइये इन आसान से उपायों से


हम सबकी जिंदगी में बहुत सी उलझनें होती हैं समस्याएं होती हैं ,इन उलझनों को दूर करने का जब और कोई माध्यम हमें नहीं सूझता तब हम और आप तांत्रिक - मांत्रिक के लिए दौड भाग करना शुरू कर देतें हैं ,और ये तथाकथित सिद्ध बाबा अपने आडम्बरों से कितनों का दुःख दूर कर पाते हैं ये तो मैं नहीं जानता हाँ इन बाबाओं  की गरीबी आप के पैसों से जरूर दूर हो जाती है ,मैं आज आपको कुछ छोटे मगर चमत्कारिक उपायों के बारे में बताता हूँ जिनसे आप की अगर एक भी समस्या हल हो गयी तो मैं अपने इस ब्लॉग की रचना को सार्थक समझूंगा ,अगर इन उपायों को करने में किसी भी तरह की दिक्कत हो तो आप मुझसे इ -मेल से संपर्क कर सकते हैं
अकारण परेशान करने वाले व्यक्ति से शीघ्र छुटकारा पाने के लिए :
यदि कोई व्यक्ति बगैर किसी कारण के परेशान कर रहा हो, तो शौच क्रिया काल में शौचालय में बैठे-
बैठे अभिमंत्रित जल से उस व्यक्ति का नाम लिखें और बाहर निकलने से पूर्व जहां पानी से नाम लिखा था, उस
स्थान पर अपने बाएं पैर से तीन बार ठोकर मारें। ध्यान रहे, यह प्रयोग स्वार्थवश न करें, अन्यथा हानि हो सकती है
शत्रु शमन के लिए :
साबुत उड़द की काली दाल के अभिमंत्रित 38 और चावल के 40 अभिमंत्रित दाने मिलाकर किसी गड्ढे में दबा दें और ऊपर से नीबू निचोड़ दें। नीबू निचोड़ते समय शत्रु का नाम लेते रहें, उसका शमन होगा और वह आपके विरुद्ध कोई कदमनहीं उठाएगा।
ससुराल में सुखी रहने के लिए :
कन्या अपने हाथ से हल्दी की 7 साबुत गांठें, पीतल का एक टुकड़ा और थोड़ा-सा गुड़ ससुराल की तरफ फेंके, ससुराल में सुरक्षित और सुखी रहेगी।घर की महिलाएं यदि किसी समस्या या बाधा से पीड़ित हों, तो निम्नलिखित प्रयोग करें...

"सवा पाव मेहंदी के तीन पैकेट (लगभग सौ ग्राम प्रति पैकेट) बनाएं और तीनों पैकेट लेकर काली मंदिर या शस्त्र धारण किए हुए किसी देवी की मूर्ति वाले मंदिर में जाएं। वहां दक्षिणा, पत्र, पुष्प, फल, मिठाई, सिंदूर तथा वस्त्र के साथ मेहंदी के उक्त तीनों पैकेट चढ़ा दें। फिर भगवती से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें और एक फल तथा मेहंदी के दो पैकेट वापस लेकर कुछ धन के साथ किसी भिखारिन या अपने घर के आसपास सफाई करने वाली को दें। फिर उससे मेहंदी का एक पैकेट वापस ले लें और उसे घोलकर पीड़ित महिला के हाथों एवं पैरों में लगा दें। पीड़िता की पीड़ा मेहंदी के रंग उतरने के साथ-साथ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी"
पति-पत्नी के बीच वैमनस्यता को दूर करने हेतु :
रात को सोते समय पत्नी पति के तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और पति पत्नी के तकिये में कपूर की २ टिकियां रख दें। प्रातः होते ही सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर फेंक दें तथा कपूर को निकाल कर उस कमरे जला दें
पति को वश में करने के लिए :
  1. यह प्रयोग शुक्ल में पक्ष करना चाहिए ! एक पान का पत्ता लें ! उस पर चंदन और केसर का पाऊडर मिला कर रखें ! फिर दुर्गा माता जी की फोटो के सामने बैठ कर दुर्गा स्तुति में से चँडी स्त्रोत का पाठ 43 दिन तक करें ! पाठ करने के बाद चंदन और केसर जो पान के पत्ते पर रखा था, का तिलक अपने माथे पर लगायें ! और फिर तिलक लगा कर पति के सामने जांय ! यदि पति वहां पर न हों तो उनकी फोटो के सामने जांय ! पान का पत्ता रोज़ नया लें जो कि साबुत हो कहीं से कटा फटा न हो ! रोज़ प्रयोग किए गए पान के पत्ते को अलग किसी स्थान पर रखें ! 43 दिन के बाद उन पान के पत्तों को जल प्रवाह कर दें ! शीघ्र समस्या का समाधान होगा !

१-शनिवार की रात्रि में ७ लौंग लेकर उस पर २१ बार जिस व्यक्ति को वश में करना हो उसका नाम लेकर फूंक मारें और अगले रविवार को इनको आग में जला दें। यह प्रयोग लगातार ७ बार करने से अभीष्ट व्यक्ति का वशीकरण होता है।
२-अगर आपके पति किसी अन्य स्त्री पर आसक्त हैं और आप से लड़ाई-झगड़ा इत्यादि करते हैं। तो यह प्रयोग आपके लिए बहुत कारगर है, प्रत्येक रविवार को अपने घर तथा शयनकक्ष में गूगल की धूनी दें। धूनी करने से पहले उस स्त्री का नाम लें और यह कामना करें कि आपके पति उसके चक्कर से शीघ्र ही छूट जाएं। श्रद्धा-विश्वास के साथ करने से निश्चिय ही आपको लाभ मिलेगा।
३-शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार को प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर अपने पूजन स्थल पर आएं। एक थाली में केसर से स्वस्तिक बनाकर गंगाजल से धुला हुआ मोती शंख स्थापित करें और गंध, अक्षत पुष्पादि से इसका पूजन करें। पूजन के समय गोघृत का दीपक जलाएं और निम्नलिखित मंत्र का 1 माला जप स्फटिक की माला पर करें। श्रद्धा-विश्वास पूर्वक 1 महीने जप करने से किसी भी व्यक्ति विशेष का मोहन-वशीकरण एवं आकर्षण होता है। जिस व्यक्ति का नाम, ध्यान करते हुए जप किया जाए वह व्यक्ति साधक का हर प्रकार से मंगल करता है। यह प्रयोग निश्चय ही कारगर सिद्ध होता है।
मंत्र : ऊँ क्रीं वांछितं मे वशमानय स्वाहा।''
४-.जिन स्त्रियों के पति किसी अन्य स्त्री के मोहजाल में फंस गये हों या आपस में प्रेम नहीं रखते हों, लड़ाई-झगड़ा करते हों तो इस टोटके द्वारा पति को अनुकूल बनाया जा सकता है।
गुरुवार अथवा शुक्रवार की रात्रि में १२ बजे पति की चोटी (शिखा) के कुछ बाल काट लें और उसे किसी ऐसे स्थान पर रख दें जहां आपके पति की नजर न पड़े। ऐसा करने से आपके पति की बुद्धि का सुधार होगा और वह आपकी बात मानने लगेंगे। कुछ दिन बाद इन बालों को जलाकर अपने पैरों से कुचलकर बाहर फेंक दें। मासिक धर्म के समय करने से अधिक कारगर सिद्ध होगा।
वैवाहिक सुख के लिए :
कन्या का विवाह हो जाने के बाद उसके घर से विदा होते समय एक लोटे में गंगाजल, थोड़ी सी हल्दी और एक पीला सिक्का डालकर उसके आगे फेंक दें, उसका वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा।घर की कलह को समाप्त करने का उपाय
रोजाना सुबह जागकर अपने स्वर को देखना चाहिये,नाक के बायें स्वर से जागने पर फ़ौरन बिस्तर छोड कर अपने काम में लग जाना चाहिये,अगर नाक से दाहिना स्वर चल रहा है तो दाहिनी तरफ़ बगल के नीचे तकिया लगाकर दुबारा से सो जाना चाहिये,कुछ समय में बायां स्वर चलने लगेगा,सही तरीके से चलने पर बिस्तर छोड देना चाहिये।
कन्या विवाह हेतु :
१. यदि कन्या की शादी में कोई रूकावट आ रही हो तो पूजा वाले 5 नारियल लें ! भगवान शिव की मूर्ती या फोटो के आगे रख कर “ऊं श्रीं वर प्रदाय श्री नामः” मंत्र का पांच माला जाप करें फिर वो पांचों नारियल शिव जी के मंदिर में चढा दें ! विवाह की बाधायें अपने आप दूर होती जांयगी !
२. प्रत्येक सोमवार को कन्या सुबह नहा-धोकर शिवलिंग पर “ऊं सोमेश्वराय नमः” का जाप करते हुए दूध मिले जल को चढाये और वहीं मंदिर में बैठ कर रूद्राक्ष की माला से इसी मंत्र का एक माला जप करे ! विवाह की सम्भावना शीघ्र बनती नज़र आयेगी

परिवार में शांति बनाए रखने के लिए :
बुधवार को मिट्टी के बने एक शेर को उसके गले में लाल चुन्नी बांधकर और लाल टीका लगाकर माता के मंदिर में रखें और माता को अपने परिवार की सभी समस्याएं बताकर उनसे शांति बनाए रखने की विनती करें। यह क्रिया निष्ठापूर्वक करें, परिवार में शांति कायम होगी।
दिमाग से चिन्ता हटाने का टोटका :
अधिकतर पारिवारिक कारणों से दिमाग बहुत ही उत्तेजना में आजाता है,परिवार की किसी समस्या से या लेन देन से,अथवा किसी रिस्तेनाते को लेकर दिमाग एक दम उद्वेलित होने लगता है,ऐसा लगने लगता है कि दिमाग फ़ट पडेगा,इसका एक अनुभूत टोटका है कि जैसे ही टेंसन हो एक लोटे में या जग में पानी लेकर उसके अन्दर चार लालमिर्च के बीज डालकर अपने ऊपर सात बार उबारा (उसारा) करने के बाद घर के बाहर सडक पर फ़ेंक दीजिये,फ़ौरन आराम मिल जायेगा।
मानसिक परेशानी दूर करने के लिए :
रोज़ हनुमान जी का पूजन करे व हनुमान चालीसा का पाठ करें ! प्रत्येक शनिवार को शनि को तेल चढायें ! अपनी पहनी हुई एक जोडी चप्पल किसी गरीब को एक बार दान करें
व्यक्तिगत बाधा निवारण के लिए:
हमारी या हमारे परिवार के किसी भी सदस्य की ग्रह स्थिति थोड़ी सी भी अनुकूल होगी तो हमें निश्चय ही इन उपायों से भरपूर लाभ मिलेगा।
व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य के करने में बार-बार असफलता मिल रही हो तो यह टोटका करें- सरसों के तैल में सिके गेहूँ के आटे व पुराने गुड़ से तैयार सात पूये, सात मदार (आक) के पुष्प, सिंदूर, आटे से तैयार सरसों के तैल का रूई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरण्डी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि में किसी चौराहे पर रखें और कहें -“हे मेरे दुर्भाग्य तुझे यहीं छोड़े जा रहा हूँ कृपा करके मेरा पीछा ना करना।´´ सामान रखकर पीछे मुड़कर न देखें।
रोग से छुटकारा पाने के लिए :
  1. यदि बीमारी का पता नहीं चल पा रहा हो और व्यक्ति स्वस्थ भी नहीं हो पा रहा हो, तो सात प्रकार के अनाज एक-एक मुट्ठी लेकर पानी में उबाल कर छान लें। छने व उबले अनाज (बाकले) में एक तोला सिंदूर की पुड़िया और ५० ग्राम तिल का तेल डाल कर कीकर (देसी बबूल) की जड़ में डालें या किसी भी रविवार को दोपहर १२ बजे भैरव स्थल पर चढ़ा दें। 
  2. बदन दर्द हो, तो मंगलवार को हनुमान जी के चरणों में सिक्का चढ़ाकर उसमें लगी सिंदूर का तिलक करें। पानी पीते समय यदि गिलास में पानी बच जाए, तो उसे अनादर के साथ फेंकें नहीं, गिलास में ही रहने दें। फेंकने से मानसिक अशांति होगी क्योंकि पानी चंद्रमा का कारक है।
नजर बाधा दूर करने के लिए
  1. मिर्च, राई व नमक को पीड़ित व्यक्ति के सिर से वार कर आग में जला दें। चंद्रमा जब राहु से पीड़ित होता है तब नजर लगती है। मिर्च मंगल का, राई शनि का और नमक राहु का प्रतीक है। इन तीनों को आग (मंगल का प्रतीक) में डालने से नजर दोष दूर हो जाता है। यदि इन तीनों को जलाने पर तीखी गंध न आए तो नजर दोष समझना चाहिए। यदि आए तो अन्य उपाय करने चाहिए।
  2. किसी रोग से ग्रसित होने पर : सोते समय अपना सिरहाना पूर्व की ओर रखें ! अपने सोने के कमरे में एक कटोरी में सेंधा नमक के कुछ टुकडे रखें ! सेहत ठीक रहेगी !
  3. एक रुपये का सिक्का रात को सिरहाने में रख कर सोएं और सुबह उठकर उसे श्मशान के आसपास फेंक दें, रोग से मुक्ति मिल जाएगी
  4. सिन्दूर लगे हनुमान जी की मूर्ति का सिन्दूर लेकर सीता जी के चरणों में लगाएँ। फिर माता सीता से एक श्वास में अपनी कामना निवेदित कर भक्ति पूर्वक प्रणाम कर वापस आ जाएँ। इस प्रकार कुछ दिन करने पर सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण होता है

शादी करने का अनुभूत उपाय : पुरुषों को विभिन्न रंगों से स्त्रियों की तस्वीरें और महिलाओं को लाल रंग से पुरुषों की तस्वीर सफ़ेद कागज पर रोजाना तीन महिने तक एक एक बनानी चाहिये।
अगर लड़की की उम्र निकली जा रही है और सुयोग्य लड़का नहीं मिल रहा। रिश्ता बनता है फिर टूट जाता है। या फिर शादी में अनावश्यक देरी हो रही हो तो कुछ छोटे-छोटे सिद्ध टोटकों से इस दोष को दूर किया जा सकता है। ये टोटके अगर पूरे मन से विश्वास करके अपनाए जाएं तो इनका फल बहुत ही कम समय में मिल जाता है। जानिए क्या हैं ये टोटके :-
1. रविवार को पीले रंग के कपड़े में सात सुपारी, हल्दी की सात गांठें, गुड़ की सात डलियां, सात पीले फूल, चने की दाल (करीब 70 ग्राम), एक पीला कपड़ा (70 सेमी), सात पीले सिक्के और एक पंद्रह का यंत्र माता पार्वती का पूजन करके चालीस दिन तक घर में रखें। विवाह के निमित्त मनोकामना करें। इन चालीस दिनों के भीतर ही विवाह के आसार बनने लगेंगे।
2. लड़की को गुरुवार का व्रत करना चाहिए। उस दिन कोई पीली वस्तु का दान करे। दिन में न सोए, पूरे नियम संयम से रहे।
3. सावन के महीने में शिवजी को रोजाना बिल्व पत्र चढ़ाए। बिल्व पत्र की संख्या 108 हो तो सबसे अच्छा परिणाम मिलता है।
4. शिवजी का पूजन कर निर्माल्य का तिलक लगाए तो भी जल्दी विवाह के योग बनते हैं।

घर में खुशहाली तथा दुकान की उन्नति हेतु :
  1. घर या व्यापार स्थल के मुख्य द्वार के एक कोने को गंगाजल से धो लें और वहां स्वास्तिक की स्थापना करें और उस पर रोज चने की दाल और गुड़ रखकर उसकी पूजा करें। साथ ही उसे ध्यान रोज से देखें और जिस दिन वह खराब हो जाए उस दिन उस स्थान पर एकत्र सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें। यह क्रिया शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को आरंभ कर ११ बृहस्पतिवार तक नियमित रूप से करें। फिर गणेश जी को सिंदूर लगाकर उनके सामने लड्डू रखें तथा ÷जय गणेश काटो कलेश' कहकर उनकी प्रार्थना करें, घर में सुख शांति आ जागी
  2. सफलता प्राप्ति के लिए :प्रातः सोकर उठने के बाद नियमित रूप से अपनी हथेलियों को ध्यानपूर्वक देखें और तीन बार चूमें। ऐसा करने से हर कार्य में सफलता मिलती है। यह क्रिया शनिवार से शुरू करें।

कुछ सिद्ध एवं उपयोगी उपाय


छोटे-छोटे उपाय हर घर में लोग जानते हैं, पर उनकी विधिवत्‌  जानकारी के अभाव में वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं। इस लोकप्रिय स्तंभ में उपयोगी टोटकों की विधिवत्‌ जानकारी दी जा रही है..
·                     सांप के विष से बचाव हेतु :
·                     चैत्र मास की मेष संक्राति के दिन मसूर की दाल एवं नीम की पत्तियां खाएं। सर्प काट भी लेगा तो विष नहीं चढ़ेगा।  इसके अतिरिक्त प्रतिदिन प्रातः काल नीम की पत्तियां चबाकर पानी पीएं और घूमने जाएं, शरीर में विष रोधी क्षमता बढ़ेगी।
·                     घर में स्थिर लक्ष्मी के वास के लिए : चक्की पर गेहूं पिसवाने जाते समय तुलसी के ग्यारह पत्ते गेहूं में डाल दें। एक लाल थैली में केसर के २ पत्ते और थोड़े से गेहूं डालकर मंदिर में रखकर फिर इन्हें भी पिसवाने वाले गेंहू में मिला दें, धन में बरकत होगी और घर में स्थ्रि लक्ष्मी का वास होगा। आटा केवल सोमवार या शनिवार को पिसवाएं।
·                     पैतृक संपत्ति की प्राप्ति के लिए : 
·                     घर में पूर्वजों के गड़े हुए धन की प्राप्ति हेतु किसी सोमवार को २१ श्वेत चितकवरी कौड़ियों को अच्छी तरह पीस लें और चूर्ण को उस स्थान पर रखें, जहां धन गड़े होने का अनुमान हो। धन गड़ा हुआ होगा, तो मिल जाएगा।
·                     सगे संबंधियों को दिया गया धन वापस प्राप्त करने हेतु :
·                     किसी सगे संबंधी को धन दिया हो और वह वापस नहीं कर रहा हो, तो ऊपर बताई गई विधि की भांति २१ श्वेत चितकबरी कौड़ियों को पीस कर चूर्ण उसके दरबाजे के आगे बिखेर दें। यह क्रिया ४३ दिनों तक करते रहें, वह व्यक्ति आपका धन वापस कर देगा।
·                      
·                     व्यापार व कारोबार में वृद्धि के लिए
·                     एक नीबू लेकर उस पर चार लौंग गाड़ दें और उसे हाथ में रखकर निम्नलिखित मंत्र का २१ बार जप करें। जप के बाद नीबू को अपनी जेब में रख कर जिनसे कार्य होना हो, उनसे जाकर मिलें।
    क्क श्री हनुमते नमः 
    इसके अतिरिक्त शनिवार को पीपल का एक पत्ता गंगा जल से धोकर हाथ में रख लें और गायत्री मंत्र का २१ बार जप करें। फिर उस पत्ते को धूप देकर अपने कैश बॉक्स में रख दें। यह क्रिया प्रत्येक शनिवार को करें और पत्ता बदल कर पहले के पत्ते को पीपल की जड़ में में रख दें। यह क्रिया निष्ठापूर्वक करें, कारोबार में उन्नति होगी।

कुछ सिद्ध प्रयोग


यदि परिश्रम के पश्चात् भी कारोबार ठप्प हो, या धन आकर खर्च हो जाता हो तो यह टोटका काम में लें। किसी गुरू पुष्य योग और शुभ चन्द्रमा के दिन प्रात: हरे रंग के कपड़े की छोटी थैली तैयार करें। श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे संकटनाशन गणेश स्तोत्र´´ के 11 पाठ करें। तत्पश्चात् इस थैली में 7 मूंग, 10 ग्राम साबुत धनिया, एक पंचमुखी रूद्राक्ष, एक चांदी का रूपया या 2 सुपारी, 2 हल्दी की गांठ रख कर दाहिने मुख के गणेश जी को शुद्ध घी के मोदक का भोग लगाएं। फिर यह थैली तिजोरी या कैश बॉक्स में रख दें। गरीबों और ब्राह्मणों को दान करते रहे। आर्थिक स्थिति में शीघ्र सुधार आएगा। 1 साल बाद नयी थैली बना कर बदलते रहें।

संकट मोचन हनुमान गायत्री मंत्र


हिन्दू धर्म में एक ही ईश्वर अलग-अलग देवशक्तियों के रूप में पूजनीय है। वैसे तो हर देव शक्ति कल्याणकारी ही होती है, लेकिन धर्मशास्त्रों में सांसारिक जीवन की कामना विशेष को पूरा करने या दोष-बाधाओं को दूर करने के लिए विशेष देव शक्तियों की उपासना विशेष फलदायी मानी गई है।
मातृशक्ति गायत्री को भी परब्रह्म यानी सर्वशक्तिमान ईश्वर माना गया है। गायत्री साधना भी 24 देवशक्तियों से जोडऩे वाली मानी गई है यानी सिर्फ गायत्री उपासना से 24 अलग-अलग देवताओं की उपासना से मनचाहे फल पाए जा सकते हैं। जिसके लिए गायत्री मंत्र के साथ इन 24 देवताओं के अलग गायत्री मंत्र के स्मरण का महत्व बताया गया है।
हर इंसान जीवन से जुड़ी विशेष कामनापूर्ति व समस्याओं, कमी या दोष से छुटकारे के लिए उसी गुण और शक्ति वाले देवता की गायत्री का स्मरण करे तो बहुत ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।
गायत्री की इन 24 देवशक्तियों में एक है – श्री हनुमान। जिनकी उपासना शक्ति और समर्पण का भाव जाग्रत करने वाली मानी गई है। जिसके लिए हनुमान गायत्री मंत्र असरदार माना गया है।

रेखाओं का परिचय



लगभग सभी हाथों में तीन रेखाएं पाई जाती हैं और आम तौर पर हस्तरेखाविद् इन पर सबसे ज्यादा जोर देते हैं.
  • बड़ी रेखाओं में हृदय रेखा को हस्तरेखाविद् पहले जांचता है. यह हथेली के ऊपरी हिस्से और उंगलियों के नीचे होती है. कुछ परंपराओं में, यह रेखा छोटी उंगली के नीचे हथेली के किनारे से और अंगूठे की तरु पूरी हथेली तक पढ़ी जाती है.दूसरों में, यह उंगलियों के नीचे शुरू होती है और हथेली के बाहर के किनारे की ओर बढ़ती देखी जाती है. हस्तरेखाविद् इस पंक्ति की व्याख्या दिल के मामलों के संबंध में करते हैं, जिसमें शारीरिक और लाक्षणिक दोनों शामिल होते हैं और विश्वास किया जाता है कि दिल की सेहत के विभिन्न पहलुओं के अलावा यह भावनात्मक स्थिरता, रुमानी दृष्टिकोण, अवसाद व सामाजिक व्यवहार प्रदार्शित करती हैं.
  • हस्तरेखाविद् द्वारा की पहचान की जाने वाली अगली रेखा मस्तिष्क रेखा होती है. यह रेखा तर्जनी उंगली के नीचे से शुरू होकर हथेली होते हुए बाहर के किनारे की ओर बढ़ती है. अक्सर मस्तिष्क रेखा शुरुआत में जीवन रेखा के साथ जुड़ी होती है (नीचे देखें). हस्तरेखाविद् आम तौर पर इस रेखा की व्याख्या व्यक्ति के मन के प्रतिनिधि कारकों के रूप में करते हैं और जिस तरह से यह काम करती है, उनमें सीखने की शैली, संचार शैली, बौद्धिकता और ज्ञान की पिपासा भी शामिल होती है. माना जाता है कि यह सूचना के प्रति रचनात्मक या विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण की प्राथमिकता (यानी, दाहिना  या बांया दिमाग ) का संकेतक होती है.
  • अंत में, हस्तरेखाविद् संभवत: सबसे विवादास्पद रेखा-जीवनरेखा को देखते हैं.

हाँथ के प्रकार







हस्तरेखा शास्त्र और उन्हें पढ़ने के प्रकार के आधार पर हस्तरेखाविद् हथेली की आकृति और उंगलियों की लाइनों, त्वचा के रंग और बुनावट, नाखूनों की बनावट, हथेली और उंगलियों की अनुपातिक आकार, पोरों की प्रमुखता और हाथ की कई अन्य खासियतों को देख सकते हैं.
हस्तरेखा शास्त्र की अधिकांश धाराओं में हाथ की आकृतियों को 4 या 10 प्रमुख शास्त्रीय प्रकारों में विभाजित किया जाता है और कभी कभी इसके लिए शास्त्रीय तत्वों या विशेषताओं  का सहारा भी लिया जाता है. हाथ का आकार संकेतित प्रकार के चरित्र के लक्षणों (यानि, एक "अग्नि हाथ" उच्च ऊर्जा, रचनात्मकता, चिड़चिड़ापन, महत्वाकांक्षा, आदि - सभी गुणों को अग्नि के शास्त्रीय तत्व से संबंधित माना जाता है.)

बांया और दांया हाँथ का महत्व


यद्यपि इस बात पर बहस होती रही है कि कौन सा हाथ पढ़ना बेहतर है, पर दोनों का अपना महत्व है. यह मानने का रिवाज है कि बांया हाथ व्यक्ति की संभावनाओं को प्रदर्शित करता है, और दाहिना सही व्यक्तित्व का प्रदर्शक होता है. कुछ का कहना है कि महत्व इस बात का है कि कौन सा हाथ देखा जाता है. "दाहिने हाथ से भविष्य और बाएं से अतीत देखा जाता है." "बायां हाथ बताता है कि हम क्या-क्या लेकर पैदा हुए हैं और दाहिना दिखाता है कि हमने इसे क्या बनाया है." "दाहिना हाथ पुरुषों का पढ़ा जाता है, जबकि महिलाओं का बायां हाथ पढ़ा जाता है." "बांया हाथ बताता है कि ईश्वर ने आपको क्या दिया है, और दायां बताता है कि आपको इस संबंध में क्या करना है."
लेकिन इन सब कहने की बातें हैं, वृत्ति और अनुभव ही आपको बेहतर ढंग से बतायेगा कि आखिर में कौन सा हाथ पढ़ना ठीक रहेगा.