मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

वास्तु के कुछ खास टिप्स


वास्तु दोष को दूर करने के लिए किसी विशेष उपाय की आवश्यकता नहीं है यदि हम अगर अपनी दैनिक दिनचर्या में इन उपायों को शामिल कर लें तो बहुत सी समस्यायों को इन छोटी-छोटी मगर अत्यधिक प्रभावशाली उपायों से दूर कर सकतें हैं .

सूर्यास्त व सूर्योदय होने से पहले मुख्य प्रवेश द्वार की साफ-सफाई हो जानी चाहिए। सायंकाल होते ही यहां पर उचित रोशनी का प्रबंध होना भी जरूरी हैं
  1. दरवाजा खोलते व बंद करते समय किसी प्रकार की आवाज नहीं आना चाहिए, बरामदे और बालकनी के ठीक सामने भी प्रवेश द्वार का होना अशुभ होता हैं.
  2. प्रवेश द्वार पर गणेश व गज लक्ष्मी के चित्र लगाने से सौभाग्य व सुख में निरंतर वृद्धि होती है,
  3. पूरब व उत्तर दिशा में अधिक स्थान छोड़ना चाहिए
  4. मांगलिक कार्यो व शुभ अवसरों पर प्रवेश द्वार को आम के पत्ते व हल्दी तथा चंदन जैसे शुभ व कल्याणकारी वनस्पतियों से सजाना शुभ होता है.
  5. प्रवेश द्वार को सदैव स्वच्छ रखना चाहिए, किसी प्रकार का कूड़ा या बेकार सामान प्रवेश द्वार के सामने कभी न रखे, प्रातः व सायंकाल कुछ समय के लिए दरवाजा खुला रखना चाहिए.
  6. सांय काल घर की दहलीज़ पर दीपक अवश्य जलाएं इससे घर का पित्र दोष भी समाप्त होता है एवं नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश नहीं हो पाता .
  7. बैठक के कमरे में द्वार के सामने की दीवार पर दो सूरजमुखी के या ट्यूलिप के फूलों का चित्र लगाएं.
  8. घर के बाहर के बगीचे में दक्षिण-पश्चिम के कोने को सदैव रोशन रखें.
  9. घर के अंदर दरवाजे के सामने कचरे का ‍डिब्बा न रखें.
  10. घर के किसी भी कोने में अथवा मध्य में जूते-चप्पल (मृत चर्म) न रखेंजूतों के रखने का स्थान घर के प्रमुख व्यक्ति के कद का एक चौथाई हो, उदाहरण के तौर पर 6 फुट के व्यक्ति (घर का प्रमुख) के घर में जूते-चप्पल रखने का स्थल डेढ़ फुट से ऊंचा न हो 

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

नए घर में पहली बार

आज के ज़माने में समाचार पत्रों एवं बुद्धू बक्सों से अवतरित गुरुओं ने वास्तु को इतना भ्रामक बना दिया है कि  किसकी माने और किसकी नहीं वाली स्थिति पैदा हो जाती है .हमारे इन गुरुओं को पता होना चाहिए कि वास्तु शास्त्र की देन हमारे प्राचीन भारत की है न कि चीन एवं इजिप्ट की. ये हमारी  विडम्बना   है  कि हम अपने देश के विद्वानों  के रचित शास्त्र नहीं वरन  कीरो , नास्त्रेदमस आदि के लिखे  हुए भ्रामक एवं उलझाऊ शास्त्रों के दीवाने रहते हैं. और शायद इसी विचार धारा ने हमसे हमारे शास्त्रों को दूर कर दिया है, जिसका फायदा आज कल के स्वंअवतरित गुरुजनों ने बखूबी उठाया है जो भारतीय  वास्तु में चीनी वस्तुओं के उपयोग से वास्तु दोष को दूर करने का बखान करते हैं .क्या ये बता सकते है कि जो दोष एक तुलसी का पौधा दूर कर सकता है वो चाइनीज़ बांस कैसे दूर करेगा,सनातन काल से हमारे यहाँ तुलसी,पीपल ,बरगद आदि को पूज्यनीय समझा जाता रहा है मगर धन्य हो ज्ञान दाताओं  का जिनकी बदौलत चाइनीज़ बांस ,कछुए ,और भी न जाने क्या -क्या, वास्तु दोष को दूर करने के नाम पर हमारे घरों में पहुंचा चुके है .
मुझे लगता है इन गुरुओं को इनके हाल में छोडना ही उचित रहेगा.चलिए अब बात करते है  कि नए घर में प्रवेश करने से पहले हमें किन - किन तिथियों एवं महीनों   पर ध्यान देना चाहिए एवं ये हम पर किस तरह का प्रभाव डालते हैं .


बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

वास्तु में दिशाओं का महत्व

गृह निर्माण के समय  दिशाओं का अपना एक विशेष  महत्व है , दिशाओं को 4 भागों में बांटा गया है ,दिशाओं के साथ - साथ 4 कोण भी मने गए है इन सबका असर  भवन एवं भवन में निवास करने वाले सभी सदस्यों पर समान रूप से पड़ता है .यहाँ हम सबसे पहले बात करेंगे दिशाओं और उनके महत्व की .
हिंदू धर्म के अनुसार दिशाओं को हम 4 भागों में विभाजित करते है
पूरब दिशा 
पश्चिम दिशा 
उत्तर दिशा 
दक्षिण दिशा 
दिशाओं को हम 4 कोण में विभाजित करते है
ईशान कोण ( पूर्व एवं  उत्तर की  दिशा का कोना )
वायव्य कोण (उत्तर एवं  पश्चिम की  दिशा का कोना )
नैरत्य कोण (पश्चिम एवं   दक्षिण की  दिशा का कोना )
आग्नेय कोण (दक्षिण एवं पूर्व की दिशा का कोना )


अब आइये जानते है की इन दिशाओं से हमारे जीवन पर क्या - क्या प्रभाव हो सकते हैं

पूरब दिशा - वास्तु शास्त्र में इस दिशा को बहुत ही महत्व पूर्ण माना गया है ,यह सूर्य के उदय होने की दिशा है एवं इस दिशा के स्वामी देवों के राजा इन्द्र हैं .भवन बनाते समय जहाँ तक हो सके इस दिशा को अधिक खुला रखना चाहिए ,यह सुख एवं समृद्धि का घोतक है .
पश्चिम दिशा -  पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण देव हैं , भवन निर्माण के समय इस दिशा को खाली नहीं छोड़ना चाहिए ,भारी निर्माण इस दिशा में बेहद शुभ माना जाता है इस दिशा में दोष होने पर गृहस्थ जीवन में सुख की कमी,कारोबार में साझेदारों से अनबन ,एवं गृह स्वामी के मान सम्मान में कमी आदि दोष होते हैं.

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

प्लाट खरीदने से पहले








प्लाट खरीदने से पहले प्लाट की वास्तुस्थिति जरूर देख लेनी चाहिए,जैसे की जहाँ आप प्लाट खरीद रहे है वहाँ पेड़ पौधों की संख्या कितनी है , प्लाट में या आस - पास कुवां या नलकूप किस दिशा एवं किस स्थिति में है एवं  प्लाट की लम्बाई चौड़ाई व आकार कितनी है .
उपरोक्त बातों को अच्छी तरह से देख लेने के बाद ही प्लाट का चयन करें .वैसे अच्छा प्लाट वही माना  गया है जिसकी चारों भुजाएं बराबर ९० डिग्री कोण में हों .
जहाँ तक संभव हो उत्तरमुखी या पूर्वमुखी प्लाट का चयन ही करना चाहिए, ये प्लाट अति उत्तम माने जाते हैं,क्योंकि भवन के लिए इन दोनों दिशाओं को बहुत ही अच्छा माना  जाता है .अगर किसी प्लाट में उत्तर और पूर्व की दिशा खुली हुई हो तो वो प्लाट दिशा के हिसाब से बहुत ही शुभ माना जाता है. 
प्लाट को पूरब एवं उत्तर की ओर नीचा , एवं पश्चिम व दक्षिण की तरफ ऊंचा होना चाहिए .
उस प्लाट व घर का चयन कदापि न करें जिससे सटकर मंदिर, मस्जिद ,चौराहा , पीपल,वटवृक्ष आदि हों.क्योंकि इन स्थितियों  में उस घर में रहने वाले हर एक  सदस्य की मानसिक आर्थिक एवं शारीरिक उन्नति में बाधाएं आने लगती हैं.
प्लाट या भवन के दक्षिण दिशा की और जल स्रोत को वास्तु शास्त्र के अनुसार बहुत ही अशुभ माना गया है.घर की नाली का निकास इस दिशा में कदापि नहीं होना चाहिए इसी के ठीक विपरीत अगर घर की नाली का निकास अथवा कुवां उत्तर दिशा में है तो ये बेहद शुभ फल देने ,वाला माना गया है.
पूरब से पच्छिम की ओर लंबा प्लाट सूर्य वेधी मन जाता है जिसे वास्तु के हिसाब से बहुत ही शुभ  माना जाता है, एवं उत्तर से दक्षिण की ओर का लंबा प्लाट धन प्रदायक माना जाता है.
प्लाट लेते समय अथवा भवन निर्माण करते समय ये ध्यान रखना चाहिए की भवन का निर्माण उस प्लाट पर कभी न करें जिसकी त्रिकोण आकृति हो, ये सबसे खतरनाक प्लाट घर के सदस्यों के लिए साबित हो सकता है .
मेरे एक मित्र जो लखनऊ नगर निगम में उच्च पद पर आसीन थे ,इसी तरह के सस्ते प्लाट के चक्कर में पड़कर अपना सब कुछ गँवा बैठे थे, अगर मै उनकी सारी बातों को यहाँ बताने लगूंगा तो शायद समय ही कम पड़ जायेगा .कहने का तात्पर्य ये है की त्रिकोण प्लाट अगर कोई फ्री में भी दे तो भी  नहीं लेना चाहिए .