सोमवार, 21 जनवरी 2013

सर्व पापनाशक शिव जी का महामन्त्र

शिव जी की महिमा का वर्णन शब्दों में व्यक्त करना सर्वदा असंभव है । शिव जी की उपासना हर युग में कल्याणकारी ही साबित हुई है चाहे वो रावण के आराध्य के रूप में रही हो या फिर लंका विजय के समय सेतुबंध रामेश्वर में श्री राम के द्वारा की गयी उपासना ये बतानें के लिए पर्याप्त है की भगवान् शिव देवों के देव महादेव हैं । अगर दानी स्वरुप की बात की जाए तो ये साधक को हर प्रकार के शाप ,पाप एवं कष्टों से अति शीघ्र छुटकारा दिला देतें हैं आज के लेख में मैं सर्व संकट ,शाप, पाप आदि को दूर करने वाला शिव श्रीरुद्राष्टकम् का उल्लेख कर रहा हूँ ।

विधि - नित्य दैनिक कार्यों से निवृत्त हो कर अगर संभव हो तो गीले वस्त्र में शिव प्रतिमा या चित्र के सामने  इस मन्त्र का नियमित  ३,५,७, अथवा जितनी संख्या में जप संभव हो ,जप करने से सभी प्रकार की बाधाओं  से छुटकारा  मिल जाता है ऐसा पुराणों में भी वर्णित है ।

श्रीशिवरुद्राष्टकम् -
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम्

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