सोमवार, 16 जुलाई 2012

पंचमुखी हनुमानजी


शास्त्रो विधान से हनुमानजी का पूजन और साधना विभिन्न रुप से किये जा सकते हैं।
हनुमानजी का एकमुखी,पंचमुखीऔर एकादश मुखीस्वरूप के साथ हनुमानजी का बाल हनुमान, भक्त हनुमान, वीर हनुमान, दास हनुमान, योगी हनुमान आदि प्रसिद्ध है। किंतु शास्त्रों में श्री हनुमान के ऐसे चमत्कारिक स्वरूप और चरित्र की भक्ति का महत्व बताया गया है, जिससे भक्त को बेजोड़ शक्तियां प्राप्त होती है। श्री हनुमान का यह रूप है – पंचमुखी हनुमान
मान्यता के अनुशार पंचमुखीहनुमान का अवतार भक्तों का कल्याण करने के लिए हुआ हैं, हनुमान के पांच मुख क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊ‌र्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित हैं.
पंचमुखीहनुमानजी का अवतार मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को माना जाता हैं. रुद्र के अवतार हनुमान ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं इसकी आराधना से बल, कीर्ति, आरोग्य और निर्भीकता बढती है.
रामायण के अनुसार श्री हनुमान का विराट स्वरूप पांच मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है। हनुमान के पांच मुख क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊ‌र्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित माने गएं हैं.
पंचमुख हनुमान के पूर्व की ओर का मुख वानर का हैं। जिसकी प्रभा करोडों सूर्यो के तेज समान हैं। पूर्व मुख वाले हनुमान का पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है.
पश्चिम दिशा वाला मुख गरुड का हैं। जो भक्तिप्रद, संकट, विघ्न-बाधा निवारक माने जाते हैं। गरुड की तरह हनुमानजी भी अजर-अमर माने जाते हैं.

हनुमानजी का उत्तर की ओर मुख शूकर का है इनकी आराधना करने से अपार धन-सम्पत्ति,ऐश्वर्य, यश, दिर्धायु प्रदान करने वाल व उत्तम स्वास्थ्य देने में समर्थ हैं.
हनुमानजी का दक्षिणमुखी स्वरूप भगवान नृसिंह का है ,जो भक्तों के भय, चिंता, परेशानी को दूर करता हैं।
श्री हनुमान का ऊ‌र्ध्वमुख घोडे के समान हैं. हनुमानजी का यह स्वरुप ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर प्रकट हुआ था मान्यता है कि हयग्रीवदैत्य का संहार करने के लिए वे अवतरित हुए. कष्ट में पडे भक्तों को वे शरण देते हैं ऐसे पांच मुंह वाले रुद्र कहलाने वाले हनुमान बडे कृपालु और दयालु हैं
हनुमतमहाकाव्य में पंचमुखीहनुमान के बारे में एक कथा हैं
एक बार पांच मुंह वाला एक भयानक राक्षस प्रकट हुआ, उसने तपस्या करके ब्रह्माजीसे वरदान पाया कि मेरे रूप जैसा ही कोई व्यक्ति मुझे मार सके. ऐसा वरदान प्राप्त करके वह समग्र लोक में भयंकर उत्पात मचाने लगा. सभी देवताओं ने भगवान से इस कष्ट से छुटकारा मिलने की प्रार्थना की. तब प्रभु की आज्ञा पाकर हनुमानजी ने वानर, नरसिंह, गरुड, अश्व और शूकर का पंचमुख स्वरूप धारण किया. इस लिये ऐसी मान्यता है कि पंचमुखीहनुमान की पूजा-अर्चना से सभी देवताओं की उपासना के समान फल मिलता है, हनुमान के पांचों मुखों में तीन-तीन सुंदर आंखें आध्यात्मिक, आधिदैविक तथा आधिभौतिक तीनों तापों को छुडाने वाली हैं. ये मनुष्य के सभी विकारों को दूर करने वाले माने जाते हैं.
पंचमुखी हनुमान जी की उपासना समस्त प्रकार के कष्टों को दूर करने वाली है .संकट के समय संकट मोचन हनुमान स्त्रोतम का पाठ करना अत्यधिक लाभदायक फल को प्रदान करने वाला है .प्रतिदिन सुबह स्नान आदि  से निवृत्त होकर एक पाठ हनुमान स्त्रोतम का जाप करने से इसके चमत्कारिक प्रभाव कुछ दिनों में ही दिखने लगते हैं .



संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्




काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत ,संकट बेगि में होहु सहाई ।।
नहिं जप जोग न ध्यान करो ,तुम्हरे पद पंकज में सिर नाई ।।
खेलत खात अचेत फिरौं ,ममता-मद-लोभ रहे तन छाई ।।
हेरत पन्थ रहो निसि वासर ,कारण कौन विलम्बु लगाई ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी सुत ,संकट बेगि में होहु सहाई ।।
जो अब आरत होई पुकारत ,राखि लेहु यम फांस बचाई ।।
रावण गर्वहने दश मस्तक ,घेरि लंगूर की कोट बनाई ।।
निशिचर मारि विध्वंस कियो ,घृत लाइ लंगूर ने लंक जराई ।।
जाइ पाताल हने अहिरावण ,देविहिं टारि पाताल पठाई ।।
वै भुज काह भये हनुमन्त ,लियो जिहि ते सब संत बचाई ।।
औगुन मोर क्षमा करु साहेब ,जानिपरी भुज की प्रभुताई ।।
भवन आधार बिना घृत दीपक ,टूटी पर यम त्रास दिखाई ।।
काहि पुकार करो यही औसर ,भूलि गई जिय की चतुराई ।।
गाढ़ परे सुख देत तु हीं प्रभु ,रोषित देखि के जात डेराई ।।
छाड़े हैं माता पिता परिवार ,पराई गही शरणागत आई ।।
जन्म अकारथ जात चले ,अनुमान बिना नहीं कोउ सहाई ।।
मझधारहिं मम बेड़ी अड़ी ,भवसागर पार लगाओ गोसाईं ।।
पूज कोऊ कृत काशी गयो ,मह कोऊ रहे सुर ध्यान लगाई ।।
जानत शेष महेष गणेश ,सुदेश सदा तुम्हरे गुण गाई ।।
और अवलम्ब न आस छुटै ,सब त्रास छुटे हरि भक्ति दृढाई ।।
संतन के दुःख देखि सहैं नहिं ,जान परि बड़ी वार लगाई ।।
एक अचम्भी लखो हिय में ,कछु कौतुक देखि रहो नहिं जाई ।।
कहुं ताल मृदंग बजावत गावत,जात महा दुःख बेगि नसाई ।।
मूरति एक अनूप सुहावन ,का वरणों वह सुन्दरताई ।।
कुंचित केश कपोल विराजत,कौन कली विच भऔंर लुभाई ।।
गरजै घनघोर घमण्ड घटा ,बरसै जल अमृत देखि सुहाई ।।
केतिक क्रूर बसे नभ सूरज ,सूरसती रहे ध्यान लगाई ।।
भूपन भौन विचित्र सोहावन,गैर बिना वर बेनु बजाई ।।
किंकिन शब्द सुनै जग मोहित,हीरा जड़े बहु झालर लाई ।।
संतन के दुःख देखि सको नहिं ,जान परि बड़ी बार लगाई ।।
संत समाज सबै जपते सुर ,लोक चले प्रभु के गुण गाई ।।
केतिक क्रूर बसे जग में ,भगवन्त बिना नहिं कोऊ सहाई ।।
नहिं कछु वेद पढ़ो, नहीं ध्यान धरो ,बनमाहिं इकन्तहि जाई ।।
केवल कृष्ण भज्यो अभिअंतर ,धन्य गुरु जिन पन्थ दिखाई ।।
स्वारथ जन्म भये तिनके ,जिन्ह को हनुमन्त लियो अपनाई ।।
का वरणों करनी तरनी जल ,मध्य पड़ी धरि पाल लगाई ।।
जाहि जपै भव फन्द कटैं ,अब पन्थ सोई तुम देहु दिखाई ।।
हेरि हिये मन में गुनिये मन,जात चले अनुमान बड़ाई ।।
यह जीवन जन्म है थोड़े दिना,मोहिं का करि है यम त्रास दिखाई ।।
काहि कहै कोऊ व्यवहार करै ,छल-छिद्र में जन्म गवाईं ।।
रे मन चोर तू सत्य कहा ,अब का करि हैं यम त्रास दिखाई ।।
जीव दया करु साधु की संगत ,लेहि अमर पद लोक बड़ाई ।।
रहा न औसर जात चले ,भजिले भगवन्त धनुर्धर राई ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत,संकट बेगि में होहु सहाई ।।

इस संकट मोचन का नित्य पाठ करने से श्री हनुमान् जी की साधक पर विशेष कृपा रहती है, इस स्तोत्र के प्रभाव से साधक की सम्पूर्ण कामनाएँ पूरी होती हैं .

1 टिप्पणी :


  1. जय हनुमान। panchmukhi hanuman kavach
    सबसे शक्तिशाली कवच ​​है जो आपको नीच ऊर्जा से बचाता है

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