वास्तु दोष को दूर करने के लिए किसी विशेष उपाय की आवश्यकता नहीं है यदि हम अगर अपनी दैनिक दिनचर्या में इन उपायों को शामिल कर लें तो बहुत सी समस्यायों को इन छोटी-छोटी मगर अत्यधिक प्रभावशाली उपायों से दूर कर सकतें हैं .
सूर्यास्त व सूर्योदय होने से पहले मुख्य प्रवेश द्वार की साफ-सफाई हो जानी चाहिए। सायंकाल होते ही यहां पर उचित रोशनी का प्रबंध होना भी जरूरी हैं
- दरवाजा खोलते व बंद करते समय किसी प्रकार की आवाज नहीं आना चाहिए, बरामदे और बालकनी के ठीक सामने भी प्रवेश द्वार का होना अशुभ होता हैं.
- प्रवेश द्वार पर गणेश व गज लक्ष्मी के चित्र लगाने से सौभाग्य व सुख में निरंतर वृद्धि होती है,
- पूरब व उत्तर दिशा में अधिक स्थान छोड़ना चाहिए
- मांगलिक कार्यो व शुभ अवसरों पर प्रवेश द्वार को आम के पत्ते व हल्दी तथा चंदन जैसे शुभ व कल्याणकारी वनस्पतियों से सजाना शुभ होता है.
- प्रवेश द्वार को सदैव स्वच्छ रखना चाहिए, किसी प्रकार का कूड़ा या बेकार सामान प्रवेश द्वार के सामने कभी न रखे, प्रातः व सायंकाल कुछ समय के लिए दरवाजा खुला रखना चाहिए.
- सांय काल घर की दहलीज़ पर दीपक अवश्य जलाएं इससे घर का पित्र दोष भी समाप्त होता है एवं नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश नहीं हो पाता .
- बैठक के कमरे में द्वार के सामने की दीवार पर दो सूरजमुखी के या ट्यूलिप के फूलों का चित्र लगाएं.
- घर के बाहर के बगीचे में दक्षिण-पश्चिम के कोने को सदैव रोशन रखें.
- घर के अंदर दरवाजे के सामने कचरे का डिब्बा न रखें.
- घर के किसी भी कोने में अथवा मध्य में जूते-चप्पल (मृत चर्म) न रखेंजूतों के रखने का स्थान घर के प्रमुख व्यक्ति के कद का एक चौथाई हो, उदाहरण के तौर पर 6 फुट के व्यक्ति (घर का प्रमुख) के घर में जूते-चप्पल रखने का स्थल डेढ़ फुट से ऊंचा न हो
- किसी भी मकान का एक प्रवेश द्वार शुभ माना जाता है। अगर दो प्रवेश द्वार हों तो उत्तर दिशा वाले द्वार का प्रयोग करें.
- पूरबमुखी भवन का प्रवेश द्वार या उत्तर की ओर होना चाहिए, इससे सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है तथा दीर्घ आयु व पुत्र धन आता हैं.
- पश्चिम मुखी मकान का प्रवेश द्वार पश्चिम या उत्तर-पश्चिम में किया जा सकता है, परंतु दक्षिण-पश्चिम में बिल्कुल नहीं होना चाहिए, भूखंड कोई भी मुखी हो, अगर प्रवेश द्वार पूरब की तरफ या उत्तर-पूरब की तरफ उत्तर की तरफ हो तो उत्तम फलों की प्राप्ति होती हैं.
- उत्तर मुखी भवन का प्रवेश उत्तर या पूरब-उत्तर में होना चाहिए, ऐसे प्रवेश द्वार से निरंतर धन, लाभ, वयापार और सम्मान में वृद्धि होती हैं.
- दक्षिण मुखी भूखण्ड का द्वार दक्षिा या दक्षिण-पूरब में कतई नहीं बनाना चाहिए, पश्चिम या अन्य किसी दिशा में मुख्य द्वार लाभकारी होता हैं.
- उत्तर-पश्चिम का मुख्यद्वार लाभकारी है और व्यक्ति को सहनशील बनाता हैं.
- मेन गेट को ठीक मध्य (बीच) में नहीं लगाना चाहिए.प्रवेश द्वार को घर के अन्य दरवाजों की अपेक्षा बड़ा व चौड़ा रखे .
- प्रवेश द्वार ठोस लकड़ी या धातु से बना होना चाहिए, उसके ऊपर त्रिशूलनुमा छड़ी लगी नहीं होना चाहिए.
- द्वार पर कोई परछाई व अवरोध अशुभ माने गए हैं.
- ध्यान रखें, प्रवेश द्वार का निर्माण जल्दबाजी में नहीं करें
——दिशा जिस काम के लिए सिद्ध हो, उसी दिशा में भवन संबंधित कक्ष का निर्माण हो और लाभांश वाली दिशा में द्वार का निर्माण करना उचित रहता हैं। प्लाटों के आकार और दिशा के अनुसार उनके उपयोग में वास्तु शास्त्र में उचित मार्गदर्शन दिया गया हैं।
—–दक्षिण भारत के वास्तुशास्त्र के मुताबिक भवन की दिशा कैसी भी हो, पर यदि वह चैकोर बना हुआ हो और मुख्य भवन के आगे यदि एक कमरा वाहन, मेहमानों के स्वागत और बैठक के मकसद से बनाया जाए तो उसके द्वारों से गृहपति मनोवांछित लाभ प्राप्त कर सकता हैं। इस प्रकार के कक्ष को पूर्व भवन कहा जाता है।
—–भवन में द्वार पूर्व या उत्तर दिशा में बनाया जायें तो संपदा की प्राप्ति सुनिश्चित हैं। तथा बुद्धि की प्राप्ति होती है।
——दक्षिण दिशा वाले द्वार से स्थायी वैभव की प्राप्ति होती हैं।
——पश्चिम दिशा वाले द्वार से धन-धान्य में वृद्धि होती हैं। ध्यान रखें कि भवन के मुख्य परिसर से लेकर भीतर के भवन के द्वार को परी तरह वास्तुशास्त्र के अनुसार रखें। इसके लिए वास्तु में बताया गया है कि प्लाट के आकार को आठ से विभाजित करें और दोनों ओर 2-2 भाग छोड़कर द्वार को रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं
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