बुधवार, 11 जुलाई 2012

बृहस्पति पर्वत का महत्व







यह पर्वत तर्जनी उंगली के नीचे स्थित होता है ,ब्रहस्पति पर्वत के अत्यधिक विकसित होने पर जातक महत्वाकांक्षी और नेतृत्व गुणों से युक्त होता है , वह दूसरों को  प्रभावित करने में अत्यधिक उत्सुक होता है जिसके कारण वह राजनीति क्षेत्र में आगे होता है , इस तरह के जातको का स्वभाव आदेशात्मक एवं धार्मिक  होता है ,ये प्रायः राजनीति के अलावा सेना, उच्च प्रबंधन, अथवा किसी संगठन में उच्च पद पर आसीन होते है
  इस पर्वत पर सितारा,त्रिकोण एवं त्रिशूल आदि के चिन्ह ब्रहस्पति पर्वत के लिए शुभ व लाभदायक माने जाते है किन्तु यदि इस पर्वत पर रेखाओं का जाल ,गुणक चिन्ह ,धब्बा ,द्वीप आदि के चिन्ह इस पर्वत के लिए अशुभ माने जाते है , अगर  दायें हाथ में ये पर्वत अन्य पर्वतों से अधिक उभार लिए हो तो जातक पर इस पर्वत का अत्यधिक प्रभाव होता है ,और वह बृहस्पति  प्रधान  जातक माना जायेगा. बृहस्पति प्रधान जातक प्रायः मध्यम कद अथवा ऊँचाई का होगा, बृहस्पति प्रधान जातक में महत्वाकांक्षा की भावनाएं प्रबल होती है, यहाँ



पर यह गौर करने वाली बात है कि इस पर्वत का केंद्र बिंदु मध्य में होना चाहिए, कहने का तात्पर्य है कि इस पर्वत का झुकाव किसी अन्य पर्वत जैसे शनि पर्वत की तरफ नहीं होना चाहिए, अगर ऐसा होता है तो बृहस्पति के गुणों में कमी आ जाती है, यदि केंद्र बिंदु का झुकाव ह्रृदय रेखा के नजदीक हो तो व्यक्ति में अपने सगे संबंधियो के प्रति द्वेष की भावना अत्यधिक पायी जाती है, यदि  इस पर्वत का केंद्र बिंदु मस्तिष्क रेखा की ओर झुका है तो निश्चय ही ऐसा जातक मानसिक कार्यों से सफलता प्राप्त करता है .
अत्यधिक विकसित  पर्वत के साथ -साथ अगर तर्जनी  उंगली भी अपनी सामान्य अवस्था से लंबी हो एवं इस उंगली का झुकाव किसी अन्य उंगली की तरफ न हो  तो जातक में  तानाशाही की प्रवत्ति भी उत्पन्न हो जाती है ,उसके जीवन का उद्देश्य सिर्फ प्राणी मात्र पर शासन किया ही होता है ,किन्तु यदि सुविकसित पर्वत के साथ तर्जनी उंगली भी अपनी सामान्य अवस्था में हो तो व्यक्ति  ईमानदार, धार्मिक ,कुशल प्रशासक एवं समाज के लिए हितकारी साबित होता है ये  अपने जीवन की समस्त रूकावटो को पार  कर समाज में धन और यश अर्जित करते है .

    यदि बृहस्पति पर्वत अपनी सामान्य ऊँचाई से भी कम की अवस्था में हो और इस पर्वत पर किसी भी प्रकार की दोष रेखा मौजूद हो तो व्यक्ति को किसी योग्य पंडित अथवा ज्योतिषीय परामर्श से पुखराज तर्जनी उंगली में धारण करना चाहिए.
इसके अलावा कमजोर पर्वत अवस्था के जातक को रोजाना १०८ बार ओम ब्रं बृहस्पतये नमः का जप  अथवा किसी केले के वृक्ष की जड़ में हर गुरूवार को उपवास के साथ जल भी अर्पण करने से इसके दोषों को कम किया जा सकता है .

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